रमजान में रोजेदारों के साथ ही आम मुसलमान भी इबादत के समय टोपी लगाते हैं। रमजान में इस बार रामपुर की टोपियां और बरेली का सुरमा भी रोजेदारों को नहीं मिल सकेगा। जानमाज या मुसल्ला भी बाजार में शायद ही मिल पाए। घरों में इबादत के लिए जानमाज की जरूरत होती है। तस्वीह (माला) की डिमांड भी इन दिनों बढ़ जाती है।
मुकद्दस रमजान में अब चार-पांच दिन ही बचे हैं। लॉकडाउन होने के कारण अभी तक बाजार में रामपुर की टोपियां भी नहीं आ सकी हैं। शहर के बाजारों में दुकानदार एक पखवाड़े पहले से ही रामपुर की टोपियां बेचना शुरू कर देते हैं। सुभाष बाजार मार्केट के संरक्षक श्याम भोजवानी का कहना है कि कपड़े की दुकानों में रामपुर से टोपियां भी मंगवाई जाती हैं।
बाजार में रंगीन, डिजाइनर टोपियों के साथ ही कश्मीरी टोपी, जालीदार टोपियों की लंबी रेंज आती है, लेकिन इस बार यह संभव नहीं दिखाई दे रहा है। बुजुर्ग लोग सफेद जालीदार परंपरागत टोपी हीपसंद करते हैं।